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भारत के लिए अरावली पर्वतमाला क्यों महत्वपूर्ण है?

अरावली पहाड़ियाँ: एक परिचय


Aravalli Hills (अरावली पहाड़ियाँ) भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह एक ऐसी भौगोलिक विरासत है जो न केवल हमारे इतिहास को बताती है, बल्कि आज के समय में भी पर्यावरण और जलवायु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हालांकि, हाल के वर्षों में खनन, शहरीकरण और नीति संबंधी फैसलों के कारण अरावली पहाड़ियाँ खतरे में आ गई हैं।

अरावली पहाड़ियों के बारे में आम मान्यताओं (Myths) और तथ्यों (Facts) को अलग-अलग करके समझते है।


SECTION 1: भौगोलिक और ऐतिहासिक तथ्य


✅ FACT 1: अरावली भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है|

The Reality: अरावली पहाड़ियाँ 1.8-3.2 अरब वर्ष पुरानी हैं, जो उन्हें विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक बनाती हैं। ये प्रोटेरोजोइक युग (Proterozoic Era) में बनी थीं, जो हिमालय से भी लाखों साल पहले का समय है। इसका मतलब है कि जब हिमालय अभी नहीं बने थे, तब अरावली पहाड़ियाँ पृथ्वी पर मौजूद थीं।

क्यों महत्वपूर्ण है: यह पहाड़ी श्रृंखला दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के लगभग 670 किलोमीटर तक फैली है। इसकी सर्वोच्च चोटी गुरु शिखर (Guru Shikhar) है, जिसकी ऊंचाई 1,722 मीटर है।

✅ FACT 2: अरावली एक महत्वपूर्ण जल संचयन क्षेत्र है
The Reality: अरावली पहाड़ियाँ भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसकी अत्यधिक दरार वाली और अपक्षयित चट्टानें (fractured rocks) वर्षा के जल को सरलता से नीचे की ओर रिसने देती हैं।

संख्यात्मक महत्व: अरावली परिदृश्य के हर हेक्टेयर से प्रति हेक्टेयर 2 मिलियन लीटर भूजल पुनर्भरण होने की संभावना है। यह उत्तर भारत के लाखों लोगों के लिए पीने का पानी, कृषि जल और औद्योगिक जल की आपूर्ति करता है।

✅ FACT 3: अरावली थार मरुस्थल के विस्तार को रोकता है
The Reality: अरावली पहाड़ियाँ एक प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करती हैं जो थार मरुस्थल (Thar Desert) को पूर्व की ओर आगे बढ़ने से रोकती हैं। यह दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मरुस्थलीकरण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


SECTION 2: पर्यावरणीय महत्व

✅ FACT 4: अरावली एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है
The Reality: अरावली पहाड़ियाँ विभिन्न प्रकार की वनस्पति और जानवरों का घर हैं।

वनस्पति (Flora):
धोक (Dhok), बबूल (Acacia), नीम (Neem)
बोगनविलिया, गुलाब और हिबिस्कस जैसे फूल
जानवर (Fauna):
तेंदुए (Leopards)
धारीदार लकड़बग्घे (Striped Hyenas)
नीलगाय (Nilgai), मोर (Peafowls)

✅ FACT 5: अरावली मानसून को प्रभावित करता है
The Reality: अरावली पहाड़ियों की वनस्पति वर्षा पैटर्न को प्रभावित करती है। पेड़ों का आवरण वायुमंडल में आर्द्रता को संरक्षित करता है और वर्षा पैटर्न को नियंत्रित करने में मदद करता है। वनस्पति में कमी से स्थानीय वर्षा में कमी आ सकती है।

SECTION 3: हाल की खबरें (2024-2025)


📰 NEWS: नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट का विवादास्पद फैसला
क्या हुआ: सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 20, 2025 को अरावली पहाड़ियों के लिए एक नई परिभाषा स्वीकार की है। इस नई परिभाषा के अनुसार, केवल वे भूभाग अरावली माने जाएंगे जो स्थानीय भूमि से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचे हों।

विरोध और चिंताएँ:

इस परिभाषा से अरावली की 90% से अधिक छोटी पहाड़ियाँ कानूनी सुरक्षा से बाहर हो गई हैं
गुड़गांव में 95% और फरीदाबाद में 90% अरावली इस नई परिभाषा के तहत सुरक्षित नहीं रह गए
राजस्थान में अकेले 1.17 लाख छोटी पहाड़ियाँ (117,000 hillocks) इस परिभाषा से बाहर निकल गईं

सरकार का दावा: केंद्र सरकार कहती है कि:

कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी जब तक sustainable mining plan तैयार न हो जाए
90% अरावली अभी भी कानूनी सुरक्षा में है
कानून में खनन का केवल 0.19% ही अनुमति दी गई है|


**#SaveAravalliजनांदोलन अभियान|
इस फैसले के विरुद्ध एक जन आंदोलन (#SaveAravalli) शुरू हुआ है। गुड़गांव, फरीदाबाद, जयपुर और उदयपुर में बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं।

SECTION 4: MYTHS vs FACTS – अरावली के बारे में आम मान्यताएँ


❌ MYTH 1: अरावली की परिभाषा केवल कागजी बदलाव है
Myth: “यह तो बस एक तकनीकी बदलाव है, इससे कोई खतरा नहीं।”

✅ FACT: यह एक महत्वपूर्ण कानूनी और पर्यावरणीय बदलाव है।


विस्तार से समझें:

1. जब कानून 90% अरावली को सुरक्षित श्रेणी से बाहर कर देता है, तो यह खनन कंपनियों को उन क्षेत्रों में काम करने की अनुमति दे सकता है|
2. अलवर जिले में तो 128 में से 31 पहाड़ियाँ पहले से ही खनन के कारण पूरी तरह समतल हो चुकी हैं|
3.जल विशेषज्ञ और पर्यावरणविद चेतावनी दे रहे हैं कि भूजल पुनर्भरण क्षेत्रों में खनन से जल स्तर में तेजी से गिरावट आएगी|

❌ MYTH 2: खनन से अरावली को कोई नुकसान नहीं होता

Myth: “खनन एक नियंत्रित गतिविधि है और इससे सिर्फ कुछ पत्थर निकलते हैं।”

FACT: खनन अरावली के लिए विनाशकारी साबित हुआ है।

वास्तविक प्रभाव:
1. वन क्षेत्र में नाटकीय गिरावट – पिछले दो दशकों में वन आवरण में तेजी से कमी
2. धूल प्रदूषण – पत्थर कुचलने वाली इकाइयों से निकलने वाली धूल स्थानीय कृषि को नुकसान पहुंचाती है
3. पानी की गुणवत्ता में गिरावट – खनन गतिविधियों ने भूजल को दूषित किया है
4. वन्यजीव आवास का नुकसान – जानवरों के रहने की जगह खत्म हो रही है

❌ MYTH 3: छोटी पहाड़ियों का कोई पर्यावरणीय महत्व नहीं है

Myth: “100 मीटर से छोटी पहाड़ियों का पर्यावरण की सुरक्षा में कोई भूमिका नहीं है।”

✅ FACT: छोटी पहाड़ियाँ उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, अगर उससे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

क्यों महत्वपूर्ण हैं ?

1. भूजल पुनर्भरण का प्रमुख स्रोत – निम्न पहाड़ियाँ और ढलानें वर्षा के पानी को जमीन में रिसने में मदद करती है|
2. वनस्पति आवरण – ये छोटी पहाड़ियों पर मौजूद है, जो मिट्टी को स्थिर रखता है|
3. वन्यजीव गलियारा (Wildlife Corridor) – जानवर इन पहाड़ियों के जरिए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाते हैं|
4. धूल और रेत के तूफान को रोकना – ये छोटी पहाड़ियाँ थार मरुस्थल से आने वाली धूल को रोकती हैं|

MYTH 4: अरावली का अरण्य (Forest) दोबारा उग जाएगा
Myth: “खनन के बाद अगर हम पेड़ लगा दें, तो सब ठीक हो जाएगा।”

✅ FACT: एक बार 100-200 साल पुरानी वनस्पति को नष्ट करने के बाद, उसे फिर से स्थापित करना बेहद कठिन है।

वैज्ञानिक कारण:

1. प्राचीन पारिस्थितिक तंत्र का विनाश – एक बार मिट्टी की संरचना और भूजल पैटर्न बदलने के बाद, पूर्ववत करना असंभव होता है
2. जैव विविधता का नुकसान – कई जानवर और पौधे प्रजातियाँ जो अरावली में रहती हैं, वे विलुप्त हो सकती हैं
3. समय की लंबी अवधि – एक वन को फिर से स्थापित करने में कम से कम 50-100 साल लगते हैं

❌ MYTH 5: अरावली में केवल कानूनी सुरक्षा की समस्या है

Myth: “बस कानून को कड़ा बना दें, सब ठीक हो जाएगा।”

FACT: समस्या कानूनी और भौतिक दोनों है।

वास्तविक समस्याएँ:
1. अवैध खनन (Illegal Mining) – कानून होने के बाद भी अवैध खनन जारी रहता है
2. कमजोर निगरानी – सरकारी निगरानी व्यवस्था कमजोर है
3. भ्रष्टाचार – स्थानीय अधिकारियों में भ्रष्टाचार की समस्या है
4. माफियागिरी – खनन माफिया स्थानीय समुदाय को धमकाते हैं
5. शहरी विस्तार – सड़कें, घर और पार्क बनाने के लिए अरावली को नष्ट किया जा रहा है

SECTION 5: अरावली से जुड़ी पौराणिक कथाएँ


✅ FACT 6: माउंट आबू (Mount Abu) और ऋषि वशिष्ठ की कथा
Mythological Story (पौराणिक कथा):
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, ऋषि वशिष्ठ (Sage Vashistha) को ऋषि विश्वामित्र से अंतर्विरोध के कारण माउंट आबू में आश्रय लेना पड़ा। यहाँ उन्होंने एक यज्ञ (Yajna) किया और देवताओं से पृथ्वी पर धार्मिकता की रक्षा के लिए एक योद्धा माँगा। यज्ञ की अग्नि से अग्निकुल राजपूत (Agnivansha Rajputs) का जन्म हुआ।

Historical Reality (ऐतिहासिक तथ्य):

1. ऋषि वशिष्ठ की शिक्षाएँ विद्वानों द्वारा दस्तावेज़ की गई हैं
2. अग्निकुल राजपूत वास्तव में 10वीं-12वीं शताब्दी में राजस्थान में शासन करते थे
3. यज्ञ की कथा इन राजपूत वंशों की उत्पत्ति को प्रतीकात्मक तरीके से बयान करती है

✅ FACT 7: गुरु शिखर (Guru Shikhar) पर दत्तात्रेय का मंदिर

Mythological Story:
गुरु शिखर (शिखर = चोटी) अरावली की सबसे ऊंची चोटी है जहाँ दत्तात्रेय (Dattatreya) – विष्णु का अवतार – एक गुफा में रहते थे।

Historical Reality:

गुरु शिखर पर दत्तात्रेय का मंदिर वास्तव में मध्यकालीन काल में बनाया गया था
राणा कुंभा (1407-1473 CE – मेवाड़ का महान शासक) ने इस मंदिर को समर्पित करने के लिए 1411 ईस्वी में एक विशाल घंटी स्थापित की थी – जो आज भी दिखाई देती है
यह सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व का एक प्रमुख केंद्र है


✅ FACT 8: दिलवाड़ा मंदिर (Dilwara Temples) और जैन तीर्थ


Historical Reality:
माउंट आबू पर दिलवाड़ा के जैन मंदिर हैं जो 11वीं-13वीं शताब्दी में बनाए गए थे। ये मंदिर सफेद संगमरमर (white marble) से बने हैं और उनकी नक्काशी विश्व प्रसिद्ध है।

SECTION 6: अरावली के प्रमुख धार्मिक स्थान

स्थानधर्ममहत्व
गुरु शिखर (Mount Abu)हिंदूदत्तात्रेय का मंदिर, सर्वोच्च तीर्थ
दिलवाड़ा मंदिर (Mount Abu)जैन11वीं-13वीं सदी का प्रसिद्ध तीर्थhindustantimes
अजमेर शरीफइस्लामप्रसिद्ध सूफी संत का मकबरा
पुष्करहिंदूब्रह्मा जी का मंदिर, महत्वपूर्ण तीर्थ
रणकपुरजैनप्रसिद्ध जैन मंदिर


SECTION 7: अरावली हरित दीवार (Aravali Green Wall Initiative)

✅ FACT 9: अरावली को बचाने की सरकारी योजना
क्या है Aravali Green Wall:
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अफ्रीका की महान हरी दीवार से प्रेरणा लेकर एक अरावली हरित दीवार परियोजना शुरू की है।

परियोजना की विशेषताएँ:

1. 1,400 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चौड़ी हरी पट्टी बनाई जाएगी
2. गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली को कवर करेगी
3. 1.1 मिलियन हेक्टेयर (11 लाख हेक्टेयर) 2027 तक पुनर्जीवित किया जाएगा


लक्ष्य:

1. रेत और धूल के तूफान को कम करना
2. वायु गुणवत्ता में सुधार
3. दिल्ली-NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण में कमी

SECTION 8: अरावली में खनन की समस्या


❌ MYTH 7: अरावली में खनन केवल पत्थर निकालने के लिए है
Myth: “बस कुछ पत्थर निकालना है, बाकी सब ठीक रहेगा।”

FACT: अरावली में बहुमूल्य खनिजों का विशाल भंडार है।

खनिज सम्पदा:

तांबा (Copper), सीसा (Lead), जस्ता (Zinc) सोना (Gold), टंगस्टन (Tungsten)
चूना पत्थर (Limestone), संगमरमर (Marble)

समस्या:

1. पिछले 40 वर्षों में अत्यधिक अवैध और अनियंत्रित खनन हुआ है
2. अलवर जिले में 31 पहाड़ियाँ पूरी तरह समतल हो गईं

SECTION 9: भविष्य के लिए संभावित समाधान

1. कड़ी निगरानी व्यवस्था (Strict Monitoring)
ड्रोन और उपग्रह तकनीक का उपयोग अवैध खनन को रोकने के लिए
भूमि पर तैनाती बढ़ाना

2. सतत खनन योजना (Sustainable Mining Plan)
सरकार ने Management Plan for Sustainable Mining बनाने की घोषणा की है
केवल निर्दिष्ट क्षेत्रों में ही खनन की अनुमति

3. वनीकरण और पुनर्स्थापन (Afforestation & Restoration)
अरावली हरित दीवार परियोजना
स्थानीय समुदायों को शामिल करना वनीकरण में

4. वैकल्पिक निर्माण सामग्री (Alternative Building Materials)
पुनर्निर्मित सामग्री का उपयोग करना
पत्थर निकालने की आवश्यकता को कम करना

5. सामुदायिक भागीदारी (Community Participation)
स्थानीय ग्रामीणों को पर्यावरण संरक्षण में भागीदारी देना
परंपरागत जल प्रबंधन प्रणालियों को पुनः जीवित करना (तांका, झलारा, तालाब-बंदी)

निष्कर्ष (Conclusion)
अरावली पहाड़ियाँ केवल एक भौगोलिक विशेषता नहीं है – ये भारत की जलवायु नियंत्रण प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

मुख्य संदेश:


✅ विरासत का संरक्षण – 2.5 अरब वर्ष पुरानी इस भौगोलिक विरासत को बचाना हमारा कर्तव्य है
✅ पर्यावरणीय महत्व – अरावली भूजल पुनर्भरण, जलवायु नियंत्रण और मरुस्थल निरोध के लिए अपरिहार्य है
✅ संतुलन की आवश्यकता – खनन से होने वाली आर्थिक लाभ महत्वपूर्ण है, लेकिन दीर्घकालीन पर्यावरणीय क्षति से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है
✅ कानूनी और व्यावहारिक कार्रवाई – केवल कानून बनाने से काम नहीं होगा; सख्त निगरानी और सामुदायिक भागीदारी जरूरी है
✅ तत्काल कार्रवाई – 2059 तक अगर स्थिति नहीं सुधरी तो 22% अरावली खो सकता है


स्रोत: Drishti IAS, The Wire, Supreme Court Observer, Ministry of Environment, Wikipedia, और अन्य प्रामाणिक स्रोत|

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